उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में घंटाघर से तकरीबन 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है टपकेश्वर महादेव मंदिर. इस मंदिर की अपनी अलग ही मान्यताएं हैं. भोलेनाथ के भक्त दूर-दूर से टपकेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां आने से भक्तों की तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं और बाबा भोलेनाथ उनकी हर परेशानी को दूर करते हैं. वहीं सावन माह के सोमवार और शिवरात्रि पर यहां श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है. यह मंदिर महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि आचार्य द्रोण को इसी स्थान पर भगवना शंकर की कृपा प्राप्त हुई. उन्हें महादेव ने यहां अस्त्र-शस्त्र और पूर्ण धनुर्विद्या का ज्ञान स्वयं दिया. ऐसी अनेकों मान्यताएं भगवान टपकेश्वर के इस स्थान से जुड़ी हैं, जो अद्भुत हैं अलौकिक हैं.
द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थली और तपस्थली भी यही मंदिर है. जहां आचार्य द्रोण और उनकी पत्नी कृपि की पूजा अर्चना से खुश होकर शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था. इसके बाद उनके यहां अश्वत्थामा का जन्म हुआ. मान्यता ये भी है, कि अश्वत्थामा की दूध पीने की इच्छा और उनकी माता कृपि से उनकी इच्छा की पूर्ति न होने पर जब अश्वत्थामा ने घोर तप किया तब भगवान भोलेनाथ ने उन्हें वरदान के रूप में गुफा से दुग्ध की धारा बहा दी. तब से यूं ही दूध की धारा गुफा से शिवलिंग पर टपकती रही और कलियुग में इसने जल का रूप ले लिया. इसलिए यहां भगवान भोलेनाथ को टपकेश्वर कहा जाता है. मान्यता यह भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला. उनकी गुफा भी यहीं है जहां उनकी एक मूर्ति भी विराजमान है.