देवभूमि के कदम कदम आपको कुछ ऐसे मंदिर और धरोहरें नज़र आएंगी, जिनका इतिहास बेहद ही रोचक है. इन्हीं में से एक हैं घंटाकर्ण यानी घंडियाल देवता. घंडियाल देवता को बदरीनाथ धाम का रक्षक कहा जाता है. जिस तरह से भैरवनाथ जी को केदारनाथ का रक्षक कहा जाता है, उसी प्रकार घंडियाल देवता भी बदरीनाथ धाम की रक्षा करते हैं. पुराणों की मान्यता के अनुसार, घंटाकर्ण पिशाच योनि में जन्मा एक पिशाच था, जो भगवान शिव का परम उपासक था. देवाधिदेव महादेव का ये उपासक शिव भक्ति में डूबा रहता था. एक तरफ जहां घंटाकर्ण भगवान शिव का भक्त था, वहीं उसे भगवान नारायण के नाम से भी बैर था. अगर कोई भी उसके आसपास नारायण का नाम लेता तो उसके मन में कुढ़न होती, इसलिए उसने भगवान के नाम के श्रवण से बचने के लिए अपने कानों में एक एक घंटा लटका लिया.
इससे जब भी कोई उसके आसपास भगवान विष्णु का नाम लेता तो घंटे की आवाज वह स्वर दबा लेती. घंटाकर्ण की भक्ति से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और इन्हें स्वयं दर्शन दिए तथा वर मांगने को कहा. वरदान स्वरूप घंटाकर्ण ने अपनी मुक्ति की इच्छा रखी. दरअसल घंटाकर्ण अपने राक्षसी जीवन से खुश नहीं था.वरदान सुनकर भगवान शिव ने कहा कि तुम्हे अगर कोई मुक्ति दे सकता है तो वो हैं भगवान विष्णु. तुम्हे उनकी शरण में जाना होगा. ये सुनकर घंटाकर्ण उदास हो गया क्यूंकि वो भगवान शिव के अलावा किसी अन्य देव की उपासना नहीं करता था इसलिए भगवान विष्णु का नाम भी नहीं सुनना चाहता था. उसकी परिस्थिति समझकर भगवान शिव ने उसे एक उपाय सुझाया और द्वारिका जाने को कहा जहां भगवान विष्णु , कृष्ण के रूप में अवतरित होकर रह रहे थे.